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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

Purush

पुरुष का प्रेम समुंदर सा होता है..गहरा, अथाग...पर वेगपूर्ण लहर के समान उतावला। हर बार तट तक आता है, स्त्री को खींचने,स्त्री शांत है मंथन करती है, पहले ख़ुद को बचाती है इस प्रेम के वेग से.. झट से साथ मे नहीं बहती।पर जब देखती है लहर को उसी वेग से बार बार आते तो समर्पित हो जाती है समुंदर में गहराई तक, डूबने का भी ख़्याल नहीं करती, साथ में बहने लगती है।स्त्री प्रेम के उन्माद में बरसती है, अंदर तक घुलने को व्याकुल....स्त्री बचती है पर फिर बह जाती है समर्पित होने के लिए अंदर तक...!!

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