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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

Milan ...

सुनो जब हम मिलेंगे उन पलों को लेकर यूंही बुदबुदा देती हूं . देखो ना कितनी पागल हूं में ना जाने कितने पलों को संजोए बैठी हूं उन मुलाकात के ...
वो मेरी शोर मचाती चूड़ियां और माथे की बिंदीया 
वो मेरे हांथो की मेहंदी और उसमे महकते आप ..
वो मेरे बिखरे बाल और उनमें उलझे आप
वो हांथो में आपका हाथ और लबों पर आपके लब .. वो दिल में हल्का सा डर और गालों कि लाली..वो उलझी सी बेकाबू सी मेरी सांसे और उन सासों में समाते आप
वो धुंध रात और उसमे पिघलते हम 
वो आपका अफ़ीमी प्यार और उसमे बहकते हम .. वो आपका आवारा इश्क़ और उसमे बावले से हम ...
हां वो गहरी रात समर्पण की आपके प्रति मेरे प्रेम की ...

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