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Love

  बैठा हूँ उसी छत के कोने में, जहां कभी हम दोनों बैठा करते थे। वो चांद, वो सितारे, आज भी वहीं हैं, पर अब उनकी रौशनी कुछ फीकी लगती है.. तब कुछ बातें तुम्हारी होती थीं, और हम हल्के से मुस्कुरा देते थे.. तुम्हारी आंखों में शर्म का वो प्यारा सा एहसास, अब सिर्फ एक याद बनकर रह गया है.. वो चांद अब भी वही है, पर उसकी चांदनी में वो पहले सी चमक नहीं.. तारों की टोली भी अब कुछ अधूरी लगती है, जैसे हमारे रिश्ते की तरह कुछ कम हो गई हो.. कभी ये जगह हमें सुकून देती थी, अब बस यादों का भार लिए चुपचाप खामोश खड़ी है.. जहां कभी बातें होती थीं,वहा अब बस ख़ामोशियाँ घिरी रहती हैं.. यादों की गीली लकड़ियाँ, मन के किसी कोने में धीमे-धीमे सुलगती रहती हैं वो ठंडी आहटें अब भी हैं, पर वो गर्मी जो दिल को छूती थी, कहीं खो गई है आंखें अब पसीजती नहीं, वो आंसू भी शायद थक गए है.. बस एक भारीपन है, जो इस जगह से निकलने का नाम ही नहीं लेता.. अब इस छत पर आना, सुकून कम और दर्द ज़्यादा देता है.. वो समय तो बीत गया, पर यादें आज भी यहां की हर ईंट में बसी हैं.. शायद, कुछ चीज़ें वैसे ही रह जाती हैं— मद्धम, अधूरी, जिन्हें समय भी बदल नह

Antim Aranya: Nirmal Verma Book Review

निर्मल वर्मा की "अंतिम अरण्य" एक गहरी और मनोवैज्ञानिक उपन्यास है, जो पाठक को जीवन, मृत्यु और आत्म-विश्लेषण की जटिल यात्रा पर ले जाती है..यह उपन्यास हमें उन सवालों से रूबरू कराता है जिनका जवाब हर व्यक्ति जीवनभर ढूंढता रहता है — अस्तित्व, अकेलापन, और जीवन का अंतिम अर्थ।


अन्तिम अरण्य का किरदार उन सवालों से जूझता है जिनका कोई स्पष्ट उत्तर नहीं होता.. वह जीवन की वास्तविकताओं का सामना करने से बचने के बजाय उन्हें गहराई से समझने का प्रयास करता है.. उपन्यास का अधिकांश हिस्सा विकास की आत्म-चिंतन यात्रा पर आधारित है, जहाँ वह अपनी पुरानी यादों,  जीवन के खोखलेपन से जूझता है..!


निर्मल वर्मा की लेखन शैली हमेशा से उनकी गहरी संवेदनशीलता और सूक्ष्मता के लिए जानी जाती है..इस उपन्यास में भी उनकी भाषा अत्यंत संवेदनशील और विचारशील है, जो पाठक के दिल में गहरी छाप छोड़ती है.. "अंतिम अरण्य" के संवाद और दृश्य, एकांत की गहराई में डूबे हुए हैं और हमें मानव अस्तित्व के उन पहलुओं से रूबरू कराते हैं जिन्हें अक्सर हम नजरअंदाज कर देते हैं..

"अंतिम अरण्य" सिर्फ एक उपन्यास नहीं, बल्कि जीवन और मृत्यु के बीच की सूक्ष्म दूरी का एक दार्शनिक चित्रण है.. यह उपन्यास उन पाठकों के लिए है, जो जीवन की गहराई में उतरकर आत्म-विश्लेषण की यात्रा पर जाना चाहते हैं..

 निर्मल वर्मा की यह रचना हमें सोचने पर मजबूर करती है कि जीवन के अंत में क्या वास्तव में कोई अंतिम सत्य होता है, या सब कुछ एक अरण्य की तरह अनिश्चित और अनजान होता है..




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