Skip to main content

Featured

तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

हरिवंशराय बच्चन...एक कविता...

ना दिवाली होती,
 ना पठाखे बजते
ना ईद की अलामत,
ना बकरे शहीद होते

तू भी इन्सान होता, मैं भी इन्सान होता,
…….काश कोई धर्म ना होता....
…….काश कोई मजहब ना होता....

ना अर्ध देते,
ना स्नान होता
ना मुर्दे बहाए जाते,
 ना विसर्जन होता

जब भी प्यास लगती, नदीओं का पानी पीते
पेड़ों की छाव होती,
नदीओं का गर्जन होता

ना भगवानों की लीला होती, ना अवतारों का नाटक होता
ना देशों की सीमा होती ,
ना दिलों का फाटक होता

ना कोई झुठा काजी होता, ना लफंगा साधु होता
ईन्सानीयत के दरबार मे, सबका भला होता

तू भी इन्सान होता,
 मैं भी इन्सान होता,
काश कोई धर्म ना होता....
काश कोई मजहब ना होता....

कोई मस्जिद ना होती,
कोई मंदिर ना होता
कोई दलित ना होता,
कोई काफ़िर ना होता

कोई बेबस ना होता,
कोई बेघर ना होता
किसी के दर्द से कोई बेखबर ना होता

ना ही गीता होती ,
और ना कुरान होती,
ना ही अल्लाह होता,
ना भगवान होता

तुझको जो जख्म होता,
मेरा दिल तड़पता.
ना मैं हिन्दू होता,
ना तू भी मुसलमान होता

तू भी इन्सान होता,
 मैं भी इन्सान होता।

*हरिवंशराय बच्चन*

Comments

Popular Posts