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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

तेरे निशान....

जाने किस बात की वो मुझको सजा देतi है
मेरी हँसती हुई आँखों को रुला देता है।

मैं भी माँग कर उससे, उसको देखूँगी एक दिन
लोग कहते हैं मांगों तो खुदा देता है।

सामने रख कर निगाहों के, वो तस्वीर को मेरी
अपने कमरे के चिरागों को बुझा देता है।

हाल-ए-दिल कैसे लिखूँ, उसको बताओ वो पागल
ख़त मेरा पढ़कर गैरों को सुना देता है।

है अलग सारे ज़माने से मसीहा मेरा
जब भी मिलता है मुझे, जख़्म नया देता है।।

जाने किस बात की वो मुझको सजा देता है
मेरी हँसती हुई आँखों को रुला देता है।।
"आरजू थी कि एक लम्हा जी लूँ,
तेरे कन्धे पै सर रख के,
मगर ख्वाब तो ख्वाब हैं पूरे कब होते हैं.. ❣
आधे से कुछ ज्यादा है, पूरे से कुछ कम,
कुछ जिंदगी...कुछ गम...कुछ इश्क...कुछ हम...!!!

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