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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

Aandhi...

बेवक्त की उस आँधी में कहाँ इतना दम था
मेरी तबाह जिंदगी से वो मंजर बेहद कम था।
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मतलब से जो मिलते थे कुछ मतलबी थे दोस्त मेरे
बेमतलब की यारी का वो खंजर भी कुछ नरम था।
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प्यास आखिर बुझती हैं इक मीठे पानी के कतरे से
पर गहरे उस समंदर में न जाने क्या भरम था।
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जुगनू जो ये मुस्कूराता तो चाँद भी जलन लगता था
पर मेरी इस मुस्कान के अंदर एक जख्म था।
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