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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

मैं और मेरी तन्हाई

जिंदगी हमेशा से मेरे लिए एक पहेली हैं। हर दिन कुछ नया लेकर आती है । मेरे लिए हमेशा से ही उसने जो भी था उसने छिन लिया है। हर बार मैंने उसे हंसते हुए सब कुछ दिया है। वो मुझे हमेशा खाली कर जाती है।
ओर तुने मेरे हसती हुई आंखों मैं हमेशा नमी ही दी है।
क्यु मुझसे इतनी नफरत है जिंदगी तुझे हर बार जब भी मैं खुद को संभाल ने की कोशिश करती हुं तु हर बार मुझमे खालीपन ओर तन्हाई से भर जाती हो।
और मुझसे कहती हो लो फिर एक बार तुझसे जीत गयी हूं।
पर अब मैंने इसी तन्हाई से दोस्ती कर ली है। जहां भी जाती हुं मेरी तन्हाई ने कभी मेरा साथ नहीं छोड़ा।
अब तो ना तुझसे हारने का गम है ना ही जितने की चाहत।
वैसे भी अब मेरे पास कुछ भी नहीं है तुझे देने के लिए
ना कोई अपना है और ना ही कोई सपना है।
है तो बस मैं और मेरी तन्हाई । अकेले तन्हाई के साथ  हर दिन आता है और वैसे ही तन्हा चला जाता है।
मेरे अपना तो कभी कोई था ही नहीं और मेरे सपने थे उन्हें तुने मुझसे छीन लिया ।
अब तो लडते लडते थक गयी हूं ए जिंदगी तुझसे
बस कर रोज रोज तु मेरा तमाशा ना बनाया कर,.... तुझे​ भी इजाजत है छोड़ दे तु मेरा साथ ओरो की तरह।
अब तो बस इंतजार है कि अब मौत आएगी ओर मुझे अपने साथ ले जाएं।
तब तो शायद मैं तुझसे जीत जाऊंगी ।

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