Skip to main content

Featured

तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

समझौता.....true myself....

अपनी सभी हार को
खुदा की मर्ज़ी जान कर
समझौता करता गया
तमन्ना पूरी ना हुईं
और मैं उसकी रज़ा मान कर
कुछ कुछ मरता गया
जो बची थी थोड़ी बहुत
हिम्मत लड़ने की
मेरा नसीब मानकर
वो भी छोड़ता गया
आदत पड़ गयी हारने की
अपनी क़िस्मत मान कर
क़िस्मत से हार जोड़ता गया
मेरा दिल भी अब मुझको
कुछ करने की जगह
हालात के आगे
झुकने को कहता है
मेरी कामयाबी से लम्बी
अब नाकामयाबी की गिनती
बहुत ज़्यादा है
हारे हुए दिल से
सब दाव हारता गया
खुदा की मर्ज़ी मानकर
समझौता करता गया.......
मेरे मन तू क्यों रोता है
जो लिखा है वही होता है
रास्ते दस और खुलते हैं
जब एक बंद होता है
 जिन पेड़ों पर
फल नहीं होते
क्या वहाँ चिड़ियों का बसेरा
नहीं होता है
हिम्मत हारने से
तुझे क्या मिलेगा
रात के बाद ही तो
सवेरा होता है
कितनी भी उड़ान
भर ले आसमान में
मिलना तो सबको
जमीं पर होता है
मत मायूस हो
दुनिया के सितम ख़ुद पर पाकर
सुना है जिसका कोई नहीं
उसका खुदा होता है

Comments

Post a Comment

Popular Posts