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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

कुछ बातें.....!!

तुम्हारा मेरी जिंदगी में घटना तो ना ही अधुरा रहा है,ना ही कभी पूरा ही हो पाया तुम तो हमेशा से मेरे यकीन बन कर रहे हो, जो मुझे हार के डर से बाहर लाता है,जो मुझे जीतते हुए देखने के लिए कुछ भी कर जाता है !
हाँ, यकीन ही हो तुम मेरे..और अगर उस से भी बढ़कर कुछ है दुनिया में तो वो ही हो तुम...जैसे उम्मीदों पर ही दुनिया टिकी है न, ठीक वैसे ही मेरे जीवन के आधार भी तुम्हारी यादों की धुरी पर ही टिक गई है अब ..मैं जानती हूँ हमारी दुनिया अलग थी जो और अलग हो गई है अब…पर...
मुझे "बदले हुए तुम" नहीं "मेरे वाले तुम" ही पसंद हो तुम्हे ऐसे ही रहना है मेरा "यकीन" बन कर और मेरी भावनाएं वो ऐसी ही रहेगी
 "हां ,मुझे तुम बहुत अच्छे लगते हो"...!!

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