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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

Yade....

जब भी बहुत उदास होती हूँ तुम्हे याद कर लेती हूं ...तुम ही हो जिसके सामने मेरे सारे सु:ख दुःख खुली किताब की तरह हैं।आज जब तुम नही हो तो बहुत याद आती है तुम्हारी ! उन सब लम्हों की जो तुम्हारे साथ बिताए!
तुम्हारे साथ कि चाय,तुम्हारे साथ का मौन,तुम्हारे साथ की उदासियां,तुम्हारे साथ मेरा खुद में खो जाना ,सब समा लिया तुमने खुद में! काश ! मुझे हर घर में तुम्हारे जैसी बालकनी मिले जहाँ से ढलते हुए सूरज की लाली से आसमान का हसीन होना साफ-साफ दिखाई पड़े....!!

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