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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

सफ़र..

तुम्हे याद है वो साथ में रास्ते का सफर
पता है तब मैं क्या सोच रही थी ? मैं चाहती थी के ये सफर यूँ ही ज़िन्दगी भर चले ,कभी न खत्म हो ।
मैं उस सफर को नही तुम्हारे साथ एक उम्र थी,जो उस पल में जी रही थी ।
मन में अलग अलग ख्याल आ रहे थे।
जैसे तुम्हे देखती रहूँ और वक्त थम जाए ,तो कभी सोचती काश ये सफर खत्म न हो,काश के हमारी मंजिल न आये ,काश के हम भूल जाए रास्ता, काश वक्त मेरे हाथ में होता तो दुनिया को उसी पल में रोक जी लेती,
मै सारी उम्र साथ तुम्हारे ..!
पर हकीकत से कब तक भागती मै,सारे ख्वाब और ज़ज़्बातों को एक विराम देकर मैं मेरे काश से बाहर आ गईं उस पल मैं तुम्हे रोक लेना चाहती थी,मैं बस तुम्हे देखे जा रही थी, चाहती थी  के पढ़ लो तुम आँखों को मेरी और रूक जाओ मेरे पास।चाहती थी के देखो तुम आँखों में दर्द मेरा ।
जानते हुए भी के ऐसा हो नही सकता फिर भी हर कोशिश करना चाहती थी और फिर वही पल आया जिसे मैं देखना नही चाहती थी तुम्हारा चला जाना । मेरे हाथ से तुम्हारा हाथ छूटना जैसे मुझसे मेरी सांसे छूट रही हो
 ऐसे जैसे फिर कभी न आना हो लौट कर .

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