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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

Tumhari baate......

आजकल मुझे हर वो चीज पसंद है जो तुम्हे मेरे ऊपर अच्छी लगती है,
वो सलीके से लपेटी हुई साड़ी ,जिसमें मै खुद को ही बाँध लेती हूँ अक्सर ,वो बालों को बाँधकर गुत करना, जिन्हें सुलझाना तुम्हे पसंद था, हाथों मे खनखनाती चूड़ियाँ ,जो खनकती है तो तुम्हारे होने का एहसास दिलाती है.!
तुमने दी हुई वो पायल जब भी छनकती है लगता है तुम पुकार रहे हो ..
ये प्यार भी न इंसान को पूरी तरह से अपने रंग मे रंग लेता है जिससे इंसान खुद ही खुद से भी अनजान हो बैठता है अक्सर....है न ???

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