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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

Waqt....

थोड़ा वक्त होता, तुम होते,हम होते..
तुम्हे यूही आलस सी भरी सुबह में ताकते रहते एक कोने में बैठे हुए ..
एक चाय , एक छत और जाड़े की धूप...
तुम यूंही सुनाते रहते हम यूंही सुनते रहते ...
अधूरा सा एक हसीन ख़्वाब
जिसमें आज भी हम तुम्हे धुंडते रहते है ..!!

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