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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

Building ki khidki....

मेरे बिल्डिंग में कई खिड़कियां है

हर खिड़की में जिंदगी का चैनल चल रहा है
कहीं कोई ऑफिस से आया है थक के कहीं बच्चो का कौतुहुल चल रहा है ।

एक अंकल है जो खिड़की पर बैठकर फ्लैशबैक चला रहे है ...

एक लड़का है जिसका पहला प्यार हलचल कर रहा है ...
एक मां है जो खिड़की के उस पार हि रहती है हमेशा कुछ न कुछ करती हुई उसके पास खिड़की के पास आने का टाइम नहीं है..

एक औरत है जो खिड़की हमेशा बंद रखती है...

एक पति है जिसकी ट्रेन आज भी लेट हुई है

एक पत्नी है जिसने
कभी वो ट्रेन पकड़ी ही नहीं..
एक में हूं जो टुकड़ा टुकड़ा इन सबकी जिंदगी जी रही हूं

और

एक तुम हो जो मेरी खिड़की अपना रहे हो ....!!



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