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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

Radha


तुम कलयुग की 'राधा' हो तुम पूज्य न हो पाओगी...कितना भी आलौकिक और नैतिक
प्रेम हो तुम्हारा तुम दैहिक पैमाने पर नाप दी जाओगी..!तुम मित्र ढूंढोगी वे प्रेमी बनना चाहेंगे
तूम आत्मा सौंप दोगी वे देह पर घात लगाएंगे
पूर्ण समर्पित होकर भी तुम 'राधा' ही रहोगी !

पुरुष किसी भी युग के हो वे पुरुष हैं !अतः सम्माननीय हैं तुम तो स्त्री हो तुम ही चरित्रहीन कहलाओगी..!एक पुरुष होकर जो
स्त्री की 'मित्रता' की मर्यादा समझे निस्वार्थ प्रेम से उसे पोषित करे समाज की दूषित नजरों से बचाकर अपने हृदय में अक्षुण्ण रखे
वो मित्र कहाँ से लाओगी?

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