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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

Rainbow....

मेरी बेरंग जिंदगी में इंद्रधनुष बन के आये थे तुम,किसी ने सच ही कहा है की हम सबकी जिंदगी में एक ऐसा वक़्त जरूर आता है जिसे हम वापिस जीना चाहते हैं

किसी के लिए वो  पल, बचपन होता है, तो किसी के लिए जवानी..मेरे लिए वो वक़्त तुमसे शुरू होता है और आज भी शायद तुमपे ही खत्म होता है,
जिसे मैं वापिस जीना चाहती हूं हर बार लगातार लगता है जैसे कोई कैसेट होती तो रिवर्स कर के चलाते रहते

तुम्हें कभी बताने का मौका नही मिला पर तुम्हे आज भी सपने में देख लेते है तो दिल की धड़कन बढ़ जाती है,और बीच में आँख खुल जाए तो मन करता है आज तो हम उठेंगे ही नही
और फिर सो जाती हूं ये सोच के शायद फिर से सपना आ जाए,पर तुम शायद मुझसे इतना रूठे हो की ख्वाबो में भी मिलते हो तो मुझसे बात नही करते फिर मैं रोने लग जाती हूं
और फिर सारा दिन खुद से कहती हूँ की काश तुम समझ पाते या काश मैं तुम्हे समझा पाती के एक औरत का मन हर जगह नहीं अटकता,

मेरा मन आज भी अटक जाता है
तुम्हारे नाम पर..तुम्हारे ज़िक्र पर...तुम्हारी याद पर....तुम्हारे ख्वाब पर...!!

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