Skip to main content

Featured

तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

Sanz

सांझ की बेला और अकेली मैं,
खो जाती हूँ,बस,तेरे प्यार मे उन नितांत अकेले क्षणों में जब एक दिन विदा लेता है और दूसरा दिन शुरू होता है,याद करती नहीं हूं ,याद आते हो तुम जैसे कोई दीप किसी मंदिर का जल जाए चुपचाप वो क्षण स्तब्ध से गिनते हैं शोर के कदमों की आहटों को।
कोई खयाल तो नहीं हो तुम, और कोई बेखयाल सा भी नहीं हो हरगिज।

प्रेम के उन नितांत अकेले क्षणों की परिधि में जो अधूरा रह गया हो बिछड़े हुए प्रेम के दिये ही जलते हैं, कोई मशाल नहीं।

Comments

Popular Posts