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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

Tum mere Suraj ho...

तुम्हें देखना...जैसे शाम के धुँधलाते सूरज की आख़िरी लालिमा को देखना...

ये जानते हुए कि धुँधला जाना है सब कुछ... सोचकर ही गहरा सियाह बसते जाता है हमारे दिल में...

फिर भी जब तक पास होते हो तुम, सूरज को अपनी रोशनी से लाल करते हुए, सब सुहाना सच लगता है दुनिया में....

हाँ, और तुम दूर जाते ही जैसे यहीं सूरज की तरह हो जाते हो। शाम ढलने के साथ वो बिदा तो हो जाता है पर रहता है मौजूद, देख नहीं सकते,
पर वो होता है... वैसे ही तुम्हारे ना होने पर भी महसूस होता है कि तुम हो...

यहीं मेरे इर्द-गिर्द, दूसरी सुबह फिर से नजर के सामने आने के लिए... बस मेरे ही सूरज बनकर ...!!


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