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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

Tumhari yaad

हर शाम मुझे तुम्हारे  साथ गुजरा वो हर पल बुहत याद अाता है

वो तुम्हारा मेरे हाथ को तुम्हारे हाथ मे पकडना  याद अाता है

वो मेरे हाथ को पहली बार चुमना याद अाता है

सर्दी की एक सुबह तुम्हारे साथ की वो चाय  याद आती है

इन यादों की चादर बनाकर लपेट लेती हूं तुम्हे  अपने बदन से

उन गुजरे हुए पलों की धूल फिर से मेरे मन में भर जाती है

तुम्हारी याद सूरज की लालिमा तरह बादलों पर स्याही के छीटो सी फैल जाती है इसे जितना मिटना चाहती हूं उतनी फैलती जाती है.
तुम संध्या की बेला हो न पूरा दिन न पूरी रात
जैसे दिन और रात का मिलन इन पलों में होता है वैसे ही तुम याद बनकर इन पलों में मुझे मिलते हो... 

कमाल है....
तुम नहीं होकर भी हो..!

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