Skip to main content

Featured

तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

Women's day.....

अच्छी लगती हैं वो औरतें जो मुझ से मिलती हैं तस्वीर बन कर..कितना कुछ लिखा होता है उनके चेहरे पर ...बहुत कुछ कहती और सुनती ये औरते....
मेंहदी से घुलती सफेद माँग ..खुले केश ..और अहसास..कितने सारे अनकहे ...

अपने प्रतिक चिन्हों पर रिझती कुछ औरतें अच्छी लगती हैं ..खुली साँस लेते हूए
घर से दफ्तर और फिर घर की तरफ़ ...!

झुलसते चेहरे और उस पर सन स्क्रीन की आर्टीफिशियल परत पर चढी थकान घर के बाहरी दरवाजे पर टाँग कर जब
चढाती है चाय खुद के लिए ..उबल के कम हो जाता हैं पानी और हिसाब लगने लग जाता हैं...

दिन भर की उन फ़रमाईशों का जो..कल रख दी गई थी पर्स और टिफी़न के डिब्बों में छौंक कर

मुझे अच्छी लगती है वो औरते जो सिर्फ कागज और canvas  उतारी गई पर रूह में नहीं.!


Comments

Popular Posts