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Dear December ❣️

 डियर दिसंबर, तुमसे इश्क़ क्यों है, ये बताना आसान नहीं ..तुम्हारे आते ही नए साल की गिनती शुरू हो जाती है,पर मेरे लिए तुम सिर्फ एक महीना या तारीख नहीं, एक दरवाजा हो—नए सफर, नई कहानियों और नए रास्तों का जो मेरी मंजिलों के और भी मुझे करीब लेकर जाता है ... तुम्हारी ठंडी हवाएं जब चेहरे को छूती हैं, लगता है जैसे पुराने गमों को उड़ाकर ले जा रही हो.. हर बार उसी मलबे में एक नई राह दिखाई है.. शायद इसलिए मैं तुम्हें हर बार एक उम्मीद की तरह देखती हूं.. तुम्हारे आते ही पेड़ों से गिरते पत्ते मुझे सिखाते हैं, कि कुछ छोड़ देना भी जरूरी होता है आगे बढ़ने के लिए.. तुम्हारी शफ्फाक शामों में, जब सूरज धीमे-धीमे डूबता है, मैं खुद को तुम्हारी गोद में एक बच्ची की तरह पाती हूं.. सहमी हुई, पर भरोसे से भरी...तुम्हारे साथ मैं अपना सारा बोझ हल्का कर देती हूं...तुम्हारी दस्तक हमेशा रहती है, एक दुआ की तरह, एक बदलाव की तरह.. तुम्हारी रूह की सर्दियों में जीते हुए, गुजरे हुए साल के लम्हों को फिर से जीती हूं ... ताकी इस गुजरे हुए साल की यादें छोड़कर आगे नए साल में बढ़ पाऊं .. नई उम्मीदों के साथ .. कुछ साथी जो साथ चल...

Marriage...

भारत में लड़कियों की शादियाँ नहीं होतीं
वो सुपुर्द कर दी जाती हैं एक नर को
ठीक उसी तरह जैसे बिना देखे,उलटे रखे
ताश के पत्तों पर दांव लगा दिया जाता है

और शादी के अगले ही दिन वो शोख लड़कियाँ
तब्दील हो जाती हैं ज़िम्मेदार औरतों में जो अपने सुहागन होने की तमाम निशानियाँ ओढ़े सुबह से शाम तक चिपक जाती हैं हर घड़ी
एक नयी ज़िम्मेदारी से..

माँ के घर में बेतकल्लुफी से कहीं भी फ़ैल जाने वाली वो लड़कीध्यान रखती है कि कहीं छः न बज जाएँ नहीं तो एक और उलाहना जुड़ जाएगा उसकी रोज़मर्रा की जिंदगी में ..
अभी तो वैसे ही बहुत हिसाब देना है कि बाप के यहाँ से क्या सीख आई है और ये ताने वही औरतें उछालती हैं, जो कल तक लड़कियाँ थीं.. किसी और घर की या फिर वो लड़कियाँ जो औरत बन जायेंगी किसी और घर में हाँ, कुछ नर सुघड़ होते हैं और बहुत बेहतर भी ठीक उन ताश की बाजियों की तरह जो आप जीत जाते हैं

पर उनकी ये अच्छाई भी अहसान होती है उस औरत पर जो अभी भी अपने अन्दर उस लड़की को जिलाए हुए है

जो मायके से चलकर साथ आई थी..!!


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