Skip to main content

Featured

तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

Pal...


हाँ- कह- दिया ....
एक पल में जैसे सब कुछ खत्म लौट जाओ......
कभी तो देखा होता मेरी तन्हा और वीरान रातो को कैसे सिसकती है तुम बिन इश्क़ रात भर बंद किवाड़ पर दस्तक देती रही पसरा रहा सन्नाटा हर और गूंजती रही मेरी आह..
याद है तुझे मेरे उन अहसासों से भरे अंतर मन पर तेरे यादो के मीठे लम्हे आवाज देती रही...

काश ! तुम सुन सकते रात भर इस कड़क ठण्ड में शोलो सा जलता रहा मन. ये कैसे समझ लिया  तुम जिंदगी नही सिर्फ जिस्म हो ये जो सांसे है न मेरी जिस्म में धड़कती है धड़कनो में जुडी है तुम्हारी साँसों से

खैर... तुमने सुना दिया अपना फरमान

सुनो ...लौट रही हूँ तेरे दर से अब सुबह जो दरवाजा खोलो तो देखना रात भर सर्द हवाओं कि थपेड़े से कैसे निशान बने है  मेरी मासूम मोहब्बत कैसी नीली पड़ गई जिस्म ठण्ड से सिकुड़ गई  लो तुम ने कहा न लौट जाओ

देखो में जा रही हूँ इस मिटटी के जिस्म को तेरे दर पर छोड़.....

Comments

Popular Posts