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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

Shaam...

ये शाम याद दिलाती है

तुम्हारे इश्क का,ज़ाफ़रानी ज़ायका...धनक के सारे रंग ...और सरगम के सातों सुर ..

याद दिलाती है ..वो लम्हा जो चुप रहा ,
वो आंख जो ..बस यूँ ही भीग गयी ,
वो मुस्कान, जो शायद होटों पर.. दबी सी रह गई ..
ये शाम कुछ ठहरी सी...जैसे पलकों की कोर में
एक ठहरा हुआ कतरा आँसू का,बेबस सा ..

शाम जैसे याद आते आते रह गयी एक मुलाकात ,जो हुई भी नहीं ..शाम जैसे वो नज़्म जो सिर्फ़ ख़्याल से,आगे न बढ़ सकी.. 

और याद दिलाती है..एक वादा जो पूरा न हुआ ,
एक इंतज़ार जो अभी जारी है ..!!


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