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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

Stree...

अजब होती है स्त्रिया,पत्नी बनते ही त्याग देती है ,सारी ख्वाहिशें,सारी आकांक्षाएं ,
अपना पूरा अस्तित्व समर्पित कर देती है ,

एक ऐसे घर को जहाँ वो शायद ताउम्र बाहर वाली ही रह जाती है ,फिर भी शिकन नही आती उनके माथे पर ,
क्योकि भरोसा होता है उन्हें अपने पति पर , उनके प्रेम पर नही कर पाती वो जरा भी संदेह
कि
जिस घर को बनाने के लिए उन्होंने अपना पूरा जीवन लगाया है , उसमे प्रेम भी बसा पायी है वो कि नही ,या सिर्फ रह गया ईंट मिट्टी से बना एक मकान ,क्योकि कई बार ऐसा होता है कि स्त्रियाँ अंधाधुंध भागती है ,घर को संवारने के लिए स्वयं को भुला कर भी,

और पति प्रेम की दुनिया किसी और के साथ बसा लेते हैं ,और स्त्री तलाशती रह जाती हैं अपने हिस्से का प्रेम
और

स्त्री कि जगह घर में सजायें गए सामानों जैसी हो जाती हैं..!!



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