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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

Tumhare liye...

सुनो साहिबा ,
मैं अच्छी तरह जानती हूँ कि तुम्हारा मिलना किसी ख्वाब की तरह है , पर फिर भी जब कभी तुम मिलोगे मैं तुम्हे कुछ देना चाहूंगी, जो कि तुम्हारे लिए बचा कर रखा है ...कुछ बारिश की बूँदें ...जिसमे मैं तुम्हारे साथ अक्सर भीगना चाहा है ,
कुछ ओस की नमी .. जिनके नर्म अहसास मैं तुम्हारे साथ अपने बदन पर ओड़ना चाहा था, और इस सब के साथ रखा है ...कुछ छोटी चिडिया का चहचहाना ... कुछ सांझ की बेला की रौशनी ... कुछ फूलों की मदमाती खुशबू ..... कुछ मन्दिर की घंटियों की खनक ... कुछ संगीत की आधी अधूरी धुनें..
कुछ सिसकती हुई सी आवाजे... कुछ ठहरे हुए से कदम... कुछ आंसुओं की बूंदे... कुछ उखड़ी हुई साँसे.... कुछ अधूरे शब्द... कुछ अहसास.... कुछ खामोशी.... और कुछ दर्द ...

ये सब कुछ बचाकर रखा है मैंने सिर्फ़ तुम्हारे लिये...!!

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