Skip to main content

Featured

तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

Dard ..


कुछ तो है,जो आधी रात को निकलता है मेरी खिड़की में से झांकते उस पेड़ के अंदर से...जिसकी डालियों ने मेरे आईने में देखा है...खेत की फसलों सा हरापन मेरी हर रौशनी को छू कर बड़े हुए उस पेड़ से....मेरे कमरे में छलाँग लगाता है दौड़कर मेरे बिस्तर में घुस जाता है..साँप की तरह रेंगते हुए मेरे सीने पे बैठ जाता है ठीक आँखों के सामने...फन उठा कर...में चौंक कर जाग जाती हूँ जैसे नींद में उसकी आहट सुन ली हो मैंने..

कुछ तो है जो मुझे तेज़ी से खींच कर धकेल देता है एक कुँए में,जिसका पानी कड़वा है...बेहद कड़वा..मैं वही घुटन फिर से महसूस करती हूँ, जिसको अपनी नींदों के हवाले करने मैंने दिन भर मशक्कत की थी..एक खारा सा बुखार बिजली की तरह मेरे जिस्म में फैल जाता है.. बदन का हर हिस्सा ठंडा... सुन्न,और रूह...तपती... सुर्ख लकड़ी..बस अपने घुटनों को सीने से चिपकाए दिन या रात के इल्म से दूर एक हरे भरे जंगल को जलता हुआ देखती हूँ। जिसका धूँआ मुझे उगता हुआ सूरज नहीं देखने देता..

वो "कुछ"सुबह छोड़ जाता है अपने बाद,एक मातम..और एक बीमार सा जिस्म...जो अपनी सुस्त आवाज़ में मुझसे कहता है.

"अब वो नहीं है तुम्हारे साथ ये मत भूलो" रात फिर मैं खिड़की बंद करने जाती हूँ, उस पेड़ के नाज़ुक पत्ते मेरे कानों में चीख कर कहते है..

कुछ पेड़ काटने भी पड़ते है....!!



Comments

Popular Posts