मैं तुमसे इतनी मोहब्बत क्यूं करती हूं ?
ये क्यूँ और मोहब्बत की बनती नही शायद..
कभी इस क्यूँ में भटकती हूँ तो कभी तुम्हारी मोहब्बत में..
पर मेरे घर में मोहब्बत ठहरी हुई है
और क्यूं को मैं भीतर आने नहीं देती ..
अब उसका पूछना भी तो वाज़िब है की .
मैं तुमसे इतनी मोहब्बत क्यूं करती हूं.. ?
ये क्यूं का सवाल शायद कुछ ऐसा ही है
जैसा तुम्हारा चले जाना ...
और मेरा तुम्हें थाम कर बैठ जाना ...
ये क्यूं भी कई सागर साथ लाता है
ये क्यूं भी ख़ुद में मुझे अक्सर डुबा जाता है...
ये क्यूं भी बहुत तुम सी ही नसीहतें देता है ...
और कभी अक्सर तुम सा डाँट देता है ...
इस क्यूं के सवाल भी बहुत तुम से हैं ...
और जवाब में तुम सा मौन रहता है ...
इस क्यूं कि और मोहब्बत से बिल्कुल नहीं पटती है शायद ....
अरे हाँ तुम्हारी तो इस क्यूं से ख़ूब जमती है..
मेरी एक मदद कर दो
तुम इसे चुप कराओ... .
या तुम इसे बतलाओ ... .
मैं तुमसे इतनी मोहब्बत क्यूं करती हूं .....!!
बताओगे ना ..??
तुम्हारे जवाब का इंतज़ार रहेगा ...!!
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