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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

Love..

स्त्री कर सकती है प्रेम बिना वासना की माँग किये,वो अलग आधार ढूँढती है प्रेम का,यदि हम उसकी सारी संवेदनाएँ दूर से समझ लें तो वो स्वयं को तुप्त महसूस करती है, और पुरुष दारा की,की गई हिंसा को भी प्रेम के रुप मे स्वीकारती है,

लेकिन जब उसको तोलने लगते हैं,अपने जज़्बातों से तो वो,प्रेम की इस काल्पनिक दुनिया से,निकलकर खुद को एकांत रखना चाहती है,

और अपने प्रेम को कभी मैला नही होने देती ..!!

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