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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

Lust ..

वासना है तुम्हारी नजर ही में तो मैं क्या क्या ढकूं, तू ही बता क्या करूं के चैन की जिंदगी जी सकूं ..

साडी पहनती हूं तो तुझे मेरी कमर दिखती है, चलती हूं तो मेरी लचक पर अंगुली उठती है ।

दुप्पटे को क्या शरीर पर नाप के लगाऊं,
समझ नहीं आता कैसे अपने शरीर की संरचना को तुमसे छुपाऊं ..

पीठ दिख जाए तो वो भी काम निशानी है,
क्या क्या छुपाऊँ तुमसे तुम्हारी तो मेरे हर अंग को देख के बहकती जवानी है ..

घाघरा चोली पहनू तो स्तनो पर तुम्हारी नजर टिकती है, पीछे से मेरे नितंबों पर तेरी आंखे सटती है  ..

पीठ दिख जाए तो वो भी काम निशानी है,
क्या क्या छुपाऊँ तुमसे तुम्हारी तो मेरे हर अंग को देख के बहकती जवानी है ..

तुम्हारे लिए तो बस तुम्हारी वासना को मिलने वाला चैन हूं ...

सिर से पांव के नख तक को छुपा लूंगी तो भी कुछ नहीं बदलेगा, तेरी वासना का भुजंग तो नया बहाना कर के हमें डस लेगा ...!!

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