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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

Meri jagah..

तुमने ढूंढा मुझे कभी, खिड़कियों के पल्लों के पीछे, दरवाजे के पीछे, घर की दीवारों में,
या दीवारों पर आई दरारों में...

तुमने कभी पर्दों को हटाकर देखा, या पाटन पर...घर के पीछे की अमराही में, या तुम्हारी सबसे पसंदीदा सुराही में...

कभी अपनी किताबों को खोलकर देख लेते,

तुम्हें ढूंढना चाहिए था..मुझे तुम्हारे आईने में, या तुम्हें अपने कांधे टटोलने चाहिए थे,अपनी आंखें देखनी चाहिए थी,

अपने होंठों से भीतर जाती हर एक पानी की बूंद में मुझे महसूस करना चाहिए था...

मैं हर जगह थी, हर उस जगह जहाँ मुझे होना चाहिए था…

तुमने ढूंढा ही नहीं, मैं वहीं थी ,
ठीक तुम्हारे बाजू में..

यहां से जाने के अगले पल से ही

वहीं थी ठहरी हुई तुम्हारे इंतजार में ...!!


Comments

  1. इतना बड़ा... इतना सुन्दर..
    लिखती कैसे हो.....???

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    Replies
    1. बस लिख लेते है हमारी फीलिंग्स है ये

      Delete

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