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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

My Love

मैं प्रेम करती हूं
इसलिए नहीं कि
मैं प्रेयसी हूँ प्रिय की
अपितु जिस ईश्वर ने
मुझे गढ़ा है,
उसने दी है, मुझे
ये प्रवृत्ति प्रेम की,,
ताकि मुझमें एक
बेहतर मैं बन सकूँ... !!

मैं प्रेम करती हूं
इसलिए नहीं, कि
बांध रखा है किसी ने
ह्रदय को मेरे,,,,
अपितु मैं आदि हूं
सत्य को देखने की
और वहीं सुंदर है... !!

नहीं सुनती मैं
किसी बेसुरे को
अपितु सुनती हूं उसके
मन का निश्छल संगीत... !!

हा मैं प्रेम करती हूं
क्योंकि,,,,
जीवन के निर्माण में
मैं जान गयी हूं
किसी के घर को
मंदिर बनाना... !!

सीख लिया है मैंने
सुख-दुख के तारों पर
मधुर धुन बजाना !!

मैं जान गयी हूं
मैं "मैं" ही हूं
और यहीं है

मेरा मुझसे....!!

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