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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

Purani Baat...

हर शाम मन का तुम्हारे फोन का इंतजार
पुरानी बात हो गयी...

वो चिड़ियों का लौटना,दीपों का जलना
नदियों का थमना ,वो कोयल का कुहू कुहू करना,अपने सौंदर्य पे पेड़ों का इतराना भी पुरानी बात हो गयी,

अरे ...!!
देखो न इधर मंदिर की घंटी बजी याद है ना जब भी बात करते थे तो मंदिर में घंटी बजती थीं
क्या नया है ?...ये बातें भी तो पुरानी बात हो गयी...!!

लुढ़क जाता है सूरज रोज़ इसी आकाश में कहीं
कौन सी शराब है ये किसी ने पूछा है कभी ?
ख़ैर छोड़ो बहुत पूछने पर बात नज़रंदाज़ हो गयी पल भर की ख़ुमारी भी पुरानी बात हो गयी...

अब शाम हुई तो क्या हुआ !... इसका होना
भी पुरानी बात हो गयी...पर कुछ है जो पुराना नहीं हुआ...
कुछ है जो वैसा है जैसा तुमने छोड़ा था या जैसा अभी होना है कुछ है जो मैंने संभाल रखा है...

तुम्हारे लिए...तुम्हारा प्यार , तुम्हारा इंतज़ार ,
हम दोनों का एक दूसरे को परस्पर आँखों से स्नेहिल स्पर्श ...

तुम्हारे फोन आने से पूर्व का हर्ष...
तुम्हारे मेरे साथ की डोर से बंधी वो पुरानी शामें... आज भी वैसी नई हैं..

हाँ उनका नया होना ..

पुरानी बात हो गयी..!!




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