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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

Will you find me ...

सुनो ,
ढूँढ़ना चाहते हो मुझे?

कभी साँझ ढले ढूँढोगे तो किसी अधूरी कहानी के कुछ पन्ने
पलट लेना, मैं ज़रूर मिलूँगी उन पन्नों के बीच सहमी हुई..

और कभी बेचैन रातो में ढूँढोगे तो तुम्हें मिलूँगी,रातरानी के नीचे
तारो के साथ चाँद से भी लज्जाती हुई..

जब कभी तड़के ढूँढोगे तो, मैं मिलूँगी तुम्हे भोर की
लाली के संग मुस्कुराती हुई...!!

और

जब कभी अपनी तलाश में निकलो तो मेरी और चले आना.....शायद तुम खुद को पूरी तरह मिल जाओगे ...

मेरे वजूद में ...!!

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