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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

आपका मिलना ...

हम जब मिलेंगे तब इतना मिल लेंगे की बिछड़ने के लिए कुछ नहीं छोड़ेंगे ..मैं नहीं जानती जब दो लोग मिलते हैं तो क्या बातें करते है पर हम जब मिलेंगे तो करेंगे ऐसी बातें जिनमें प्रेम होगा और उन बातों के साथ बरसात भी होगी ..हां बहुत सी ख्वाहिशें है जिन्हें मैं संजोए बैठी हू मैं आपसे मिली नहीं हूं और ना ही कभी सामने बैठकर देखा है आपको..
हां पर यकीं है शहर के स्टेशन की भीड़ में ,मैं पहचान लूंगी आपको जैसे एक बच्चा पहचान लेता है अपनी मां को..यह कितनी सरल बात है कि दो दूर शहर वाले लोग जब प्रेम करते है तो केवल वे दोनों ही प्रेम में नहीं होते उनके बीच दो शहर भी प्रेम में होते है ..सब कितना सही जा रहा है कि हम मिलेंगे और मिलकर बुनेंगे एक सपना ठीक वैसा ही जैसा मैने उसे देखा है और जैसा आपने सोचा है...
पता नहीं देखो ना मेरी कितनी ही कल्पनाएं है..हमारे मिलने की बात को लेकर..पर जब ये सपना पूरा होगा और आप मुझे देखोगे तो क्या अजनबी की तरह मुस्कुरा दोगे या फिर ... ये सब कितना सच होगा नहीं जानती? पर इतना तो जरूर सच है कि

मेरा आपसे प्रेम करते रहना मेरे लिए दिल के धड़कने के समान है और वो आँखरी सांस तक धड़कते रहेगा.... !!

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