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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

Heart beats....

हर हृदय में एक स्पंदन है..हर स्पंदन में एक स्पर्श है..वो स्पर्श जो बरबस ही छू जाता है अन्तर्मन..सैकड़ों तार एक साथ ध्वनि निकालते हैं..

स्पंदन सिखाता है जीवन जीने की अद्भुत कला..आपको बताता है..कि जीवन एक बहुत सुन्दर सी कहानी है..

जो आप स्वयं लिखते हैं..स्पंदन सिखाता है जीवन जीने की अद्भुत कला..
आपको बताता है..
कि जीवन एक बहुत सुन्दर सी कहानी है..
जो आप स्वयं लिखते हैं..

अपने हिस्से के वो सारे पल..
जिसमें सिमटी होती हैं आपकी अनुभूतियाँ..
कभी खिलखिलाकर हंसने की चाहत..
तो कभी टूट कर रो लेने की पीड़ा..

आप खुद तय करते हैं कि..
जीवन में आने वाली तमाम खुशियों का स्वागत किया जाए
या दरवाज़ा बंद करके उनको द्वार से ही विदा कर दिया जाए

आप खुद चुनते हैं अपनी राहें..
जिनका मुसाफ़िर बनना आपका हक़ है..
आप खुद तय करते हैं अपनी परिधि..
खुद को किसी परिधि में कैद कर लेना..
खुद तक किसी खुशी की दस्तक तक न पहुचने देना..
क्या ये खुद से अन्याय नहीं है..??

मत बन्द करिये खुद को किसी कोठरी में..
जहाँ.. न एहसास की धूप आ सके..
न मुक्ति की खयाल..
न आँखों को रोशनी का एक कतरा नसीब हो सके..

खोल दीजिए..
सभी दरवाज़े खिड़कियाँ और झरोखे..
जहाँ से आ सके ठंडे हवा के झोंके..
और जहाँ महसूस कर सको..
खुद मे सिर्फ और सिर्फ खुद को..

उन्मुक्त.. किसी परिंदे की तरह..!!

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