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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

Sunday

आज इतवार के फुरसत के दिन सोचा थोड़ा खुद को समेटा जाए .. देखो ना कितनी
कुछ अनकही बातें ...कुछ टीस ,कुछ अवसाद , कुछ खलबलाहट ,कुछ याद ,कुछ ख़याल,
और कुछ मै ...
भावनाओं के फ़र्श पर बिखरे पड़े हैं ..
( शायद मैंने बिखेरा है सब कुछ )
तुम देख रहे हो ना मन के इस कमरे में इतनी जगह नहीं कि दूसरी शेल्फ़ रख लूं ...

सुनो ना ,

तुम आकर कम से कम ये

"कुछ बातें" ही लिए जाओ ...

बाकी को मैं एडजस्ट कर दूंगी..!!

(कहा पता नहीं.. )

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