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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

प्रेम...

मै अब  प्रेम तलाशते रहने की अनन्त तक चलने वाली प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बनना चाहती
मैं आपको देखकर अब प्रेम को स्वीकार कर लेना चाहती हूं ..
क्योंकि आपसे से ही तो जीवन का पुनः जागरण हुआ है और में आपके हाथों को थाम कर काशी के घाटों पर विचरण करते हुए..एक दिन पुनः लिख दूंगी  कोई कहानी
की सावन जिस शहर में बिना बताए आ जाता है
ठीक उसी प्रकार मेरे जीवन में भी प्रेम बिना किसी आवेदन के प्रवेश कर गया है हां आप वहीं प्रेम हो जिसकी कहानी लिखी गयी

मेरी कहानी के साथ ...!!

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