मैं तुम्हारे इंतज़ार को जानती तक नहीं थी पर
उसने मेरे कहने पर ही दोस्ती के हाथ आगे बढ़ाए थे .. पलट के फिर पढ़ने की ज़रूरत नहीं थी...
हाँ तुमने ठीक पढ़ा “ मेरे ही कहने पर ही.. ”
पर मैंने इसलिए कहा क्योंकि मुझे लगा कि वो मुझसे दोस्ती करना चाहता है ..और मैं जानती थी कि तुम्हारे दिल की तुम्हारे इंतज़ार से दोस्ती बहोत गहरी है .. और तुम्हारे दिल से मेरे दिल की दोस्ती न टूटे इसलिए मैंने तुम्हारे इंतजार को दोस्त बना लिया..
और तुम्हारा इंतज़ार..! अरे देखो वो इतना अच्छा दोस्ताना स्वभाव का होगा मुझे बिल्कुल नही लगता था ..देखो ना जब से मुझसे मिला है इसकी दोस्ती मेरी आँखों हो गयी हैं..और आँखे बता रहीं थी कि ये आजकल तुम्हारा इंतजार दिल के भी काफ़ी क़रीब हो रहा है ..
सच में अगर मुझे पता होता कि ये ऐसा है तो शायद ..शायद मैं इसे नहीं कहती कि दोस्ती का हाथ बढ़ाओ..पर फिर मैं और क्या करती ?
ये मैं कभी सोच ही नहीं पाई क्यूंकि मैंने जब भी तुम्हारे इंतज़ार को बाहर भेजा है उसके जाते ही हर बार तड़प मुझसे मिलने आ जाती थी ..
सच ! आज भी नहीं सोच पाती हूं कि मुझे तुम्हारे इंतजार से दोस्ती करनी थी या नहीं..और अब ...अब चीज़ें हाथ से बाहर हैं ,
तुम्हारा यही इंतज़ार जो कभी मुझे बेचैन कर देता था आजकल सुकूँ देता है .. और अब हालात कुछ ऐसे बन गये हैं की मेरे दिल की दोस्ती तुम्हारे दिल से ज़्यादा गहरी
तुम्हारे इंतज़ार से है...!!
Comments
Post a Comment