जब मैंने प्रेम के 'प' अक्षर को समझना शुरू किया था जिसमें मेरी द्रोणाचार्य थीं अमृता, तब किसी ने मुझसे कहा था "जानती हो प्रेम के प अक्षर का अर्थ प्रतीक्षा है, और यदि जीवन में प्रतीक्षा करने का सब्र और साहस है तो प्रेम का एक चरण तुम बड़ी आसानी से पार कर सकती हो….अब तो ऐसा लगता है अमृता जी ने तुम्हें प्रेम की परिधि में बांध दिया है!!"….अमृता का आकाश सा असीमित प्रेम मुझे हमेशा किसी चुम्बकीय शक्ति की तरह अपनी ओर खींचता रहा है, शायद यही कारण है मैंने प्रेम पर लिखना चुना वो प्रेम जो शाश्वत है, और रक्त की तरह धमनियों में बहता है...उनके प्रेम की पराकाष्ठा उनके एक खत में देखी जो इमरोज़ के लिए लिखा था ... "रेगिस्तान में हम धूप सी चमकती रेत के पीछे पानी समझ कर भागते हैं धोका खाते है तड़पते है लोग कहते है रेत रेत है पानी नहीं बन सकती ... जो सयाने होते है वो रेत को पानी समझने कि गलती नहीं करते उनकी प्यास में कोई शिद्दत नहीं होती .. मुझे अपनी प्यास मुबारक है ... तुम्हारी आशी ( अमृता)
मैंने सीखा अमृता से प्रेम की प्यास बस ऐसी ही होनी चाहिए जो जीवनभर ना बुझे .. प्रेम में प्रेम की प्यास रखना चाहिए अपने साथी का साथ पाने कि प्यास .. उसकी यादों की प्यास .. जो आपके प्रेम को सदैव जिंदा रखेगा ..और प्रेम जीवन की धूप में हमेशा आपके सिर पर किसी छाव की तरह मिलेगा
जीवन में प्रेम का मिलना सौभाग्य की पराकाष्ठा होती है ....!!
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