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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

सफ़र...

एक ख्वाहिश है..
कभी तुम मेरे साथ हो सफ़र ऐसा भी हो पैदल राहो मे, खुले आसमान के नीचे.. हाथो मे हाथ डाले दोनो ढलती शाम को तकते हुए एक दूसरे में खोए हुए .. वो रंग बिखेरती शाम और प्यार का रंग बिखेरते हम ..हां एक कॉफी भी ..और तुम वहीं गाना गुनगुनाते हुए जो अक्सर तुमसे कहती हूं गाने के लिए..

एक ख्वाहिश है एक अलसाई सुबह ऐसी भी हो
दिसंबर के कोहरे वाली मेरा तुमसे वो कोहरे वाला सूर्योदय देखनी की जिद करना और
फ़िर तुम्हारा जान बुझ कर आंखें मूंदे मुझे टीज करना...और तुम वहीं गाना गुनगुनाते हुए जो अक्सर तुमसे कहती हूं गाने के लिए..

मेरा रुठना और फ़िर तुम्हारा प्यार से मुझे मनाना…इसी तरह बेफिक्री से दूर दोनो आवारा घूमते हम...

हां हो कभी एक सफ़र ऐसा भी...!!


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