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तारे आशु के सबसे करीबी रहे हमेशा ..
आशु मां के जाने बाद अकेले हो गई थी ... अब दादी ही उसकी "अाई" थी.. जब भी उसे मां की याद आती दादी आशु को छतपर लेकर जाती .. और तारो की तरफ हात दिखाकर कहती आशु तुम्हारी मां देखो तुम्हें देख रही बेटा ... फिर आशु बस दादी के गोद में उन कहानिया सुनते , कभी दादी के किस्से सुनते सुनते सो जाती ,आशु जैसे जैसे बड़ी हुई उसे अब रात का इंतज़ार रहने लगा कि कब रात हो और वो मा से सारे दिन की बाते कहे इसीलिए कभी उसे मां की कमी महसूस नहीं हुई
हां पर उसे कभी कभी मां के गोद की मां के आंचल की छाया की कमी महसूस जरूर होती थी .. आशु ने अब एक छोटी सी दुनिया बना ली थी वो, उसके तारे और डायरी ..
हर रात जब वो घर पर थकी हुई आती हैं .. दिनभर की आपाधापी के बाद , जब कभी आशु बीमार भी हो जाती है ,.. अकेली सी वो कोई नहीं बोलने को .. उसे बस एक बार पूछने को आशु कैसी हो? ठीक तो हो ना ?
तब वो चली जाती हैं अपने तारो के पास कभी कभी बस जी भर कर रो लेती है , कभी उनके साथ हस लेती .. और आज भी वही नन्ही आशु उन तारो में ढूंढ़ती हैं ...
अपनी मां..!!
आशु ने सब लिखा बस कभी लिख नहीं पाई तो
मां को ...!
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