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शिव कल फिर से पता नहीं मेरे दिल का आसमा तुम्हारी यादों से भर गया , ( और मुझे ये भी पता है तुम मुझे इन दो महीनों में भूल चुके हो तुमने अपनी एक नई जिंदगी नई दुनियां बसा ली है किसी और के साथ ) पता नहीं ये दिल बहुत बैचेन था बहुत ही, शिव बस आपकी आवाज सुनने का मन हो रहा था .. क्या करती आप इतने दूर जा चुके हो मैं चाहकर भी आपको पुकार नहीं सकती , रिश्ते का ये मोड़ जहां आप चाहकर भी नहीं पूछ सकते कैसे हो बहुत ही भयावह होता है ... तुम्हें पता है बातें न कह पाने का बोझ शायद सबसे भारी होता है,दिखता नहीं, आभासी होता हैं आजकल मै तुम्हारी तस्वीर से भी बात नहीं करती क्यूंकि तुम्हारी वो मुस्कुराती हुई तस्वीर अब मुझे रुला देती है .. बिलकुल तुम्हारी यादों की तरह..!
इसलिये, कभी कभी मै जब कह ना पाने की ख़ामोशी से भर जाती हूं तब ख़ुद से ही बातें साझा कर लेती हूँ तुम्हें पता है दिल हल्का होकर कहता है..
बातें कभी गुप्त नहीं होती...!!
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