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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

Aap

 ये बारिश आपकी याद दिला देती है 

हाँ...आप बिल्कुल वैसे हो..इन बूंदों की तरह निर्मल स्वच्छ और में आपसे बिल्कुल विपरीत आप जितने शांत और समझदार इतनी ही मै जिद्दी, अल्हड़,आप किसी गहरे कुएं से लगते हो मुझे कभी कभी हां पर मुझे आप बूंदों से ज्यादा अच्छे लगते हो ..जिनमे में भीग जाना चाहती हूं.. देखो ना ये बूंदे बरस तो बाहर रही पर आज वो मेरे रूह को भी भिगो रही .. हां जैसे आपने छुआ है मेरे रूह को .. अरे हां फिर से क्यों पढ़ रहे हो हां एक आप हि ने तो मुझे और मेरी रूह को छुआ था .. कितनी बार आपका नाम लिखती हूं अपनी हथेली पर... जब दुबारा मिटाती हूँ...आपकी यादों में खो जाती हूं और आपको अपने करीब पाती बेहद करीब .. इतना के आपमें घुल जाती हूं शिव उस वक्त मैं जो हूँ मैं न रहकर आप हो जाती हूँ.. शिव याद है हम आपसे कहा करते थे शिव अरु बस घुल जाएगी आपमें हां शिव कितनी ही बार जब भी उस खिड़की के पास होती हूं आपमे घुल जाती हूं .. आपका एहसास.. आपका प्रेम मुझ में घुल गया है ...

आपके प्रेम में मैं विक्षिप्त हो गई हूं और विक्षिप्त होना मतलब आपमें विलीन होना ही तो है.. शिव इंसान बंधन से मुक्त होता है रूह से कभी कोई मुक्त हो पाया है ? और रूह से मुक्त होना मतलब जीवन से मुक्त होना है ...

जानती हूं हमारा मिलन अधूरा है .. पता नहीं मेरा इस मिलन शब्द से कभी इतना तालुक्कत नहीं रहा .. आपके आने के सोचने भर से ही मेरा मन मयूर नाचने लगता है ..

हां शिव आपका मेरे जीवन में आना जैसे...मरुभूमि में भटकते राही को जीवन सुधा मिलने जैसा है...!!

( और इस बात को मैं आपको कभी समझा नहीं सकी ..शिव कैसे कह दूं  के तुम्हारा इंतज़ार नहीं दिल में दबी कोई बात नहीं,

तन्हा बीत रहे हैं पल वक़्त के साथ

दिन कट जाता है सर्द रात नहीं.. miss u #जिन्दग़ी )

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