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सुनो शिव ,
मुझे आप चाहे कभी गुलाब तोहफे में मत लाना लेकिन सुनो एक गुलमोहर का पेड़ जरूर लगाना हमारे प्यार का, वो गुलमोहर मेरे प्यार कि तपिश रंगो में रंगेगा तब आप हमे याद कर लेना, सुनो आप न लाना चाहे कभी बेला का गजरा ..लेकिन मेरे मन की उलझन जरूर सुलझाना ,सुनो ना आप न बनना चाहे कभी मेरे लिए चांद करवाचौथ का बस कभी स्याह रात में भोर का तारा जरूर बन जाना..
सुनो, शिव आप चाहे न बनना मेरे लिये सुख की बदरी ,लेकिन दिनभर की तपिश के बाद की वो ढलती सांझ जरूर बन जाना माना मैं कभी नासमझ बन गई थी तो पर शिव आप तो समझ दार थे ना क्यों नहीं संभला रिश्ता हमरा ,बिखर गई हूं मैं तन्हाई में कभी आकर क्या आप प्यार से अपनी बांहों मे मुझे समेट लोगे ...
करोगे क्या बस इतना ?
क्या दोगे हमे आप ये तोहफा ?
शिव आप न बनना चाहे मेरे कान्हा लेकिन
मेरे "शिव" हमेशा आप ही बनना...!!
बस इतना ही ...करोगे क्या ?
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