Featured
- Get link
- X
- Other Apps
उलझा हुआ प्रेम ...
हमने कहा था एक दूसरे से कि हम ,की हम एक दूसरे के प्रेम में है , क्या सच में ऐसा था ? नहीं शायद ..मैंने ज़ब प्रेम में कदम रखा, मेरे हिस्से का प्रेम पंख पसारे तुम्हारे साथ एक ख्वाब से दूसरे ख्वाब. बुनता रहा ... मैं चाहती थी तुम्हारे साथ देखना ,बारिशें, पहाड़,झीलें, नदियां, अनंत तक फैला रेगिस्तान, मै चाहती थी तुम्हारे कांधे पर सर रखकर सारी रात देखते रहें तारे,और सोचा था उन्हें जोड़ कर मैं तुम्हारी वहीं मुस्कुराती तस्वीर बना लूंगी ( जो आज भी में जब तारों के साथ होती हूं तब बना लेती हूं )
मै चाहती थी हम एक दूजे का हाथ थामे दिसंबर की सर्दी में दूर तक चलते रहें नंगे पाँव और महसूस करे वो ओस की बूंदों को एहसास, मैं चाहती थी हम दोनों में होती रहे छोटी मोटी लड़ाईयां, और किसी सुबह उठते ही अपने माथे पर तुम्हारे होंठों का स्पर्श, मैं चाहती थी पहाड़ों पर जाना और पुकारना चाहती थी तुम्हारा नाम और चाहती थी तुम सुनो उसकी प्रतिध्वनि बार-बार,( इस बार जब हम गए थे पहाड़ों में तब मैंने पुकारा था तुम्हारा नाम पर तुम नहीं थे वहा अपना नाम सुनने, शिव तुम्हें पता है तुम्हारा नाम सुकून देता है मुझे दिन में दस बार में तुम्हे पुकार लेती हूं )
और इन सब से भी बढ़कर मै चाहती थी तुम्हारा प्रेम .. तुम्हारा साथ ..तुम दूर होकर भी मेरे पास होने का एहसास ..कितना सब कुछ है ना ..शायद इसीलिए तुम्हें मेरे इन सारी बातों से घुटन महसूस होने लगी थी..
हां शायद हम में से एक कोई नहीं चाहता था...प्रेम एक रिश्ते में ढल जाए ,या शायद हम में से एक कोई चाहता था...एक बेनाम रिश्ते को प्रेम मिल जाए ... तब प्रेम मुस्कुराता था ,शायद हम में से एक कोई चाहता था...प्रेम को क़ैद करना ,हम में से कोई एक प्रेम के ‛ पर ’ चाहता था ...तब प्रेम मुस्कुराता था ,हम में से एक कोई बताता था... अपने प्रेम से अपनी हर बातें ,
हम में से एक कोई रहा मौन बस, खुद को रखा उस प्रेम से अलग .. हम में से कोई एक था बेहतर की तलाश में ( और क्यों ना हो वो बेहतरीन जो था, हमने सीखा दो लोगों के बीच में जब तीसरा आ जाए तो सारी अच्छाई ,सारा प्यार धरा का धरा रह जाता है ....)
तब हम दोनों ने देखा प्रेम को सिसकते हुए ,रोते हुए, रेत की तरह बिखरते हुए, मैं खड़ी देखती रही अपने प्रेम को दो हिस्सों में बटते, एक हिस्सा जो सिर्फ मेरे पास रहा,सबकी नज़रों से दूर,और वो हिस्सा आँखों में खटकता और शायद तुम्हारी भी इसलिए तुमने कह दिया और क्या कहा था वो शायद तुम्हें याद हो, मेरे प्रेम के दोनों ही हिस्सों के आदि, अंत तुम ही थे इसलिए तुम्हें मैंने हमेशा शिव के रूप में देखा मेरे आराध्य के रूप में ..शिव सोचती हूं काश मै भी आपको भूल पाती जैसे आप भुलाए बैठे हो हमे ..
हम दोनों ने कभी प्रेम से पूछना जरूरी नहीं समझा उसके रोने की वजह ..., क्या हम नहीं जानते थे की प्रेम क्या चाहता था ?क्या समझता था ? क्यों मुस्कुराता था ?
भीतर ही भीतर तो हमने इसे कितना उलझा दिया .....!!
अब मै इस प्रेम को ऐसे ही उलझा हुआ रहने देना चाहती हूं ... मैं खुद इसमें इतनी उलझ गई हूं कि अब हिम्मत नहीं होती सुलझाने की ...!!
Comments
Popular Posts
Antim Aranya: Nirmal Verma Book Review
- Get link
- X
- Other Apps
एक प्रेमी होता है डाल से टूटे उस पत्ते की भाँति जो पेड़ द्बारा अलग कर दिये जाने पर भी उसी पेड़ के नीचे अपना शेष जीवन व्यतीत करना चाहता है वह कभी अपने तोड़ दिये जाने की शिकायत नही करता...कुछ ऐसा होता है सच्चे और सरल प्रेमी का जीवन.
ReplyDeleteशिकायते सिर्फ़ उनसे होती है जिन्हे हम अपना समझते है गैर से कभी कुछ नहीं कहां जाता है हां हमे शिकायते भी उनसे ही है और इश्क भी उनसे है ( मेरे शिव से) ..
Deleteहर लम्हा ख्यालों में उनके होना,पर उनका कभी सामने न होना यही इश्क है ...!!
मोहब्बत सब्र के अलावा कुछ नहीं हमने हर इश्क को इंतजार करते देखा है|
Deleteमुहब्बत न जीने देती है ना मरने, इतनी गहराई मेरे इश्क में क्यों आयी है... ये खुदा तूने मुहब्बत बनाई क्यों है गर बनाई तो जुदाई क्यों है..?
Delete😢😢😢😢😢😢😢😢