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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

ऐसे ही

शिव पता है आज ऑफिस से घर आते वक्त फिर से आपकी यांदे साथ चलने लगी थी मेरे ऐसे लग रहा था कि ये सफ़र कभी ना खतम हो ..

सुनो,

मैं ढूँढ़ती रहूंगी  आपको हर जगह आप कभी नज़र ना आना..!

हां पर मैंने चाहा मेरा होना हर उस जगह जहाँ मैं कभी नहीं थी.. जैसे आपके दिल में ..


सुनो 

शिव मै चाहती हूं मै यूंही आपके खयालों में खोयी रही हूं और हमे मौत आ जाए ...मेरे मृत्यू के वक्त आप ना सही आपकी यादें तो होगी साथ में ...!

Comments

  1. ज़िन्दगी में ज़िन्दगी खोया है मैंने ।
    ये प्रेम की विरह,तड़प स्वं य ईश्वर ने भोगा है तो हम इंसानों की क्या अवकात।
    अब कहानी तो अधूरी रहनी ही थी, वो अक्सर ख़ुद को राधा और मुझे कृष्ण बुलाती थी... !! मेरी राधिका... ये मेरा मेरा हुआ शरीर जिंदा लाश है लाश। मेरी रूह तुझमें है राधिका हे ईश्वर इस शरीर को कब मृत्यु आएगी? वैसे भी रूह के बिना इस शरीर का कोई अस्तित्व नहीं। समझ में नहीं आता इतना प्यार होने के बावजूद भी प्रेम में विरह और तड़प क्यों मिलती है ?
    ईश्वर सब कुछ कर सकते है तो वो क्यों नहीं मिला पाते दो बिछड़े प्रेमियों को?
    बहोत सारे सवाल है ईश्वर से.... बहुत

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