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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

कुछ अनकही बाते

 सुनो शिव मै नहीं जानती कि कब आपको पुकारते पुकारते मेरी कलम से आखरी शब्द हो .. कोनसा वो डायरी का पन्ना उस दिन आंखरी होगा जब मेरी सांस थमेगी .. कौन सी वो मेरी कुछ बाते होगी वो आखिरी हो जाएगी .

मैं ये भी नहीं जानती कि कब पलको के पंख थक जाएंगे,और आंखे आपकी प्रतीक्षा में हमेशा के लिए बन्द हो जाएंगे .... 

जानते हो शिव मै चाहती हूँ, हर जन्म आप हमे ऐसे ही मिलना .. मेरे शिव बनकर आप "शिवाला", मैं "गंगोत्री का जल" हो जाऊं, 

आप "शिव"-और मैं "सती" बन जाऊं...( पता है हमारे ये हमारे वाहियात खयाल ही है.. ये भी जानती हूं सती ने अपने शिव के लिए कितने जन्मों का इंतजार किया था .. में खुद की तुलना उनसे बिलकुल भी नहीं करना चाहूंगी हां पर ख्वाहिश जरूर है कि प्रेम हो शिव सती सा .. ) 

सुनो शिव मैंने अपनी मुट्ठियों में, कैद कर रखे हैं कुछ लम्हें, आप पर खर्च करने को, जुगनुओं की तरह ,वो मेरे मिलन के पागल से खयाल और मेरे एहसास आपके लिए प्यार के .....

सुनो ना शिव आ जाओ कि मन को बंजारेपन की भटकन से तनिक मुक्ति मिले....आओ कि मैं अपने

फूल से कांपते ह्रदय को, आपके दामन में बांध दूं और विलीन हो जाऊ 

आपमें हमेशा के लिए ...!!

सुन रहे हो ना आप..

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