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तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ?? : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं ! : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं
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कुछ अनकही बाते
औरतें डरती है विधवा होने से या अलग होने से .. इसीलिए वो ख़ुश होती है
“सदा सुहागन “के आशीर्वाद से ..
क्यूँकि वो जानती है की पति के बाद उसकी ज़िंदगी को पहाड़ बना दिया जाएगा .. और वंचित कर दिया जाएगा हर शुभ कार्य से ..वो छुपा लेती है ख़ुद क़ो किसी त्योहार के दिन जैसे किसी स्टोर रूम में पड़ा सामान.. क्या तुमने कभी ग़ौर किया है कैसे वो समय से पहले बूढ़ी हो जाती है ..जब उनके दिल के रास्ते कभी ना ख़त्म होने वाले highaway में तब्दील हो जाते है ..उलझ जाती है वो ज़िंदगी के किसी चौराहों पर..लिख दिया जाता है उनके हातों की लकीरों पर अभागन ..सफ़ेद पैरों वाली..
इसीलिए वो हमेशा डरती है हमेशा खोने से..पर क्यूँ नही डरता पुरुष औरत को खोने से क्यूँकि वो जानता है ,यहीं समाज उसे पहाड़ जैसी ज़िंदगी का हवाला देकर अनुमति देगा फिर से ब्याहने की
एक कुँवारी से...!!
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