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यूंही ..
मैं सारी उम्र नहीं रहूँगी / रहूँगा.. जिन्दग़ी आगे बढ़ने का नाम है ..ये कहकर किसी भी रिश्ते से छुटकारा पाना कितना आसान है .. है ना ? हां मानती हूं कि जिंदगी आगे बढ़ने का नाम है पर ..हर बार ये बोल कर रिश्तों को मरने से पहले मत मारो ..सोचना और सोच सोच कर रिश्तों को मार डालना दोनों ही अलग क्रियाएं है जो इस समाज ने कितनी सरलता से अपना ली है .. सबसे ज़्यादा दर्दनाक होता है किसी अपने खोना , किसी दोस्त खोना वो भी इन शब्दों के आधार पर ..हां जानती हूं किसी के जाने से जिदंगी रुकती नहीं पर वो जिंदगी .. पर वो कही ठहर जाती है ये कौन समझा है.. किसी के जाने से कुछ ज़्यादा नहीं बस हम मौन से भर जाते है, हां कुछ यादें होती है जो वक्त बेवक्त तंग करती है .. भरी महफ़िल में जब तन्हा सा लगे तब कुछ आसूं पलकों से गिर जायेंगे और हम उस वक्त ये कह दे कि " आँखों में कचरा चला गया " रातों में कभी याद आए उस दोस्त की जिसे कभी हम अपने हिस्से की वो अनकही कहानी, कुछ अपने हिस्से का काला सच बताकर हलका सा महसूस करते थे.. उसके जाने के बाद हम इन सारी अनकही कहा नियों से भर जाएंगे और वो किसी से सच ना कह पाने की टीस चुभती रहेगी
और हमारी रीढ़ की हड्डी उस बोझ के तले थोड़ी झुक जाएगी .. जानती हूं इस सबसे लेकिन दुनिया नहीं रुकेगी , वो पहले की तरह भागती रहेगी..उलझने , अपने अन्दर जा तूफान लेकर हम फ़िर भी अपने रोज़मर्रा के कामों में लग जाएंगे...
किसी के जाने से कोई जीना नहीं छोड़ता साहब बस चेहरे से ग़ायब हो जाती है रौनक, और पलकों पर आसूँ जम जाते हैं जिन्हें दुनिया कभी देख नहीं पाती..फिर हम जीने लगते है दोहरी जिदंगी .. एक दुनियां के लिए और एक वो जिंदगी जो हम कभी जीना चाहते थे .. उस तूफान , उलझनों के साथ .. हां जानती हूं सारी उम्र एक शिद्दत से किसी की इबादत कर पाना, किसी की दुआ में शामिल हो जाना, किसी के सुख दुःख का हिस्सा बन पाना, मुमकिन नहीं और हर किसी को ये हासिल भी नहीं होता .. जानती क़िस्मत ने हमसे लोगों को छीना है.. पर जाने वाले ये बोल कर फ़िर से उसकी बातों पर मोहर लगा देते है ..तब ना जाते हुए उस दोस्त को ,उस जाने वाले को एक बार पूछने का मन करता है तुम मेरे दोस्त हो या किस्मत के ? और क्या सच में आगे बढ़ जाना इतना आसान होता है ..!
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