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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

यूंही ..

 कैसे हो शिव.. 

क्या हुआ 

ऊ हूं यूंही बस आज ना मन कर रहा तुमसे पूछने का तुम्हें गले लगाने का .. कुछ कहो ना 

क्या कहूं ... 

 जाने दो कुछ नहीं ..!

(कुछ कहना था तुमसे यूंही )

ज़िन्दगी में कभी कभी कुछ बाते अधूरी रह जाती है .. कुछ ख्वाब अधूरे ही रह जाते .. कुछ कहानियां कभी पूरी नहीं होती  ...और कुछ लोग कभी किसी कहानी का हिस्सा नहीं बन बाते ..आज की शाम बस उस

 सब कुछ अधूरे के लिए ...!

( देखो ना ये शाम भी अधूरी ही तो होती है( मेरी तरह) ना पूरा दिन ना पूरी रात ...)


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